Natasha

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तमस (उपन्यास) : भीष्म साहनी

"बहुत हैं।" फिर अपनी छड़ी से बाईं ओर ऊँचे पर्वत की ओर संकेत करते हुए बोला, “उस पहाड़ की तलहटी पर पानी के झरने हैं और घने पेड़ों के झुरमुट हैं। जल के सोते नीचे तक पहुँचकर पहाड़ में से फूटे हैं, बहुत सुन्दर जगह है। हिन्दुओं ने झरनों के आसपास पत्थर की चिनाई करके वहाँ ताल बना लिए हैं। एक-एक झरने को अलग-अलग नाम दे दिया है : राम और सीता और अपनी मायथोलॉजी के अन्य नामों पर।" यह कहते हुए रिचर्ड मुस्करा दिया, यह सोचकर कि ये नाम लीज़ा के लिए बड़े अनूठे और अपरिचित नाम होंगे। “बहुत स्थान हैं," वह कहे जा रहा था “जगह-जगह पर अनजाने पीरों की क़बरें हैं जिन पर लोग दीये जलाते हैं, पुराने किले हैं, मन्दिर हैं...” फिर बेंत से उसी पहाड़ी के दामन में फैले एक और पेड़ों के झुरमुट की ओर इशारा करते हुए बोला, “वहाँ थोड़ी दाईं ओर भी एक बढ़िया पिकनिक-स्पॉट है, वहाँ किसी पीर की क़ब्र है, मुसलमानों के किसी पीर की क़ब्र है। वहाँ पर वसन्त के मौसम में एक अनूठा मेला लगता है, दूर-दूर से नाचने-गानेवाली औरतें जमा होती हैं और पन्द्रह दिन तक मेला लगा रहता है। दिन को लोग जुआ खेलते हैं, रात को नाच-गाना होता है। तुम्हें कभी ले चलूँगा।"

"क्या आजकल वहाँ मेला लगा है?"

"हाँ, लगा है, पर इन दिनों जाना ठीक नहीं।"

"क्यों?"

"इन दिनों हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच तनाव पाया जाता है। दंगा-फसाद का डर है।"
लीज़ा ने हिन्दुओं और मुसलमानों की स्थिति के बारे में सुन रखा था, लेकिन वह इनके बारे में जानती बहुत कम थी।

“मैं तो अभी तक हिन्दुओं और मुसलमानों को अलग-अलग से पहचान भी नहीं सकती। तुम पहचान लेते हो रिचर्ड, कि आदमी हिन्दू है या मुसलमान?"

"हाँ, मैं पहचान लेता हूँ।"

"घर का खानसामा क्या हिन्दू है या मुसलमान?"

"मुसलमान।"

“तुम कैसे जानते हो?"

“उसके नाम से, फिर उसकी छोटी-सी दाढ़ी से, उसके पहनावे से भी, फिर वह नमाज़ पढ़ता है, यहाँ तक कि उसके खान-पान के तरीके भी अलग हैं।"

"तुम्हे सब मालूम है, रिचर्ड?"

"कुछ-कुछ मालूम है।"

"तुम कितना-कुछ जानते हो, तुम्हें ढेरों बातें मालूम हैं, मैं तो कुछ भी नहीं जानती। तुम मुझे भी बताना रिचर्ड, मैं भी समझना चाहती हूँ। और वह तुम्हारा सेक्रेटरी, वह जो उस रोज़ स्टेशन पर आया था, सफ़ेद-सफ़ेद दाँतोंवाला, वह कौन है? हिन्दू या मुसलमान?"

"वह हिन्दू हैं।"

"तुमने कैसे जाना?"

"उसके नाम से।"

"तुम नाम से ही जान जाते हो?"

"बड़ा आसान है, लीज़ा। मुसलमानों के नामों के अन्त में अली, दीन, अहमद, ऐसे-ऐसे शब्द लगे रहते हैं जबकि हिन्दुओं के नामों के पीछे ऐसे शब्द जैसे लाल, चन्द, राम लगे रहते हैं। रोशनलाल होगा तो हिन्दू, रोशनदीन होगा तो मुसलमान, इकबालचन्द होगा तो हिन्दू, और जो इकबाल अहमद होगा तो मुसलमान।"

"इतना कुछ तो मैं कभी भी नहीं जान सकूँगी," लीज़ा हतोत्साह होकर बोली।

"और वह टर्बनवाला आदमी कौन है जो तुम्हारी ‘गाड़ी' चलाता है, जिसके लम्बी-सी दाढ़ी है?"

"वह सिख है।"

"उसे पहचानना मुश्किल काम नहीं है।" लीज़ा हँसकर बोली।

"सभी सिखों के नाम के पीछे सिंह लगा रहता है।" रिचर्ड ने कहा।

दोनों टीले पर से नीचे उतरने लगे। हवा में हल्की-हल्की तपिश आने लगी थी। सूरज निकल आया था और वातावरण पर से रहस्य का झीना पर्दा उतरने लगा था।

"इस इलाके में घूमने का बहुत मज़ा है, तुम्हें अच्छा लगेगा लीज़ा। हर वीक-एंड कहीं न कहीं निकल जाया करेंगे।"

रिचर्ड का घोड़ा आगे-आगे था। दोनों गोल-गोल पत्थरों से अँटे सूखे नाले को पार कर रहे थे।

"इस वीक-एंड को कहाँ चलोगे?...टेक्सिला?"

लीज़ा की आवाज़ में रिचर्ड को हल्का-सा व्यंग्य का भास हुआ। रिचर्ड के लिए टेक्सिला बहुत ही सुन्दर और महत्त्वपूर्ण स्थल था। वहाँ पर वह घंटों घूमता रहता था, बार-बार जाना चाहता था। लेकिन लीज़ा? क्या लीज़ा को भी बँडहरों में घूमना पसन्द होगा?


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